यह दिन सप्त ऋषियों को समर्पित होता है और हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद और हरतालिका तीज के दो दिन बाद पड़ती है।
मान्यता है कि ऋषि पंचमी व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इस खास दिन का पालन बड़े श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है।
ऋषि पंचमी का पवित्र पर्व इस साल 8 सितंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11:03 से दोपहर 1:34 तक रहेगा। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं सप्त ऋषियों की पूजा करती हैं और अपने जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति की कामना करती हैं। ऋषि पंचमी व्रत कथा का पढ़ना व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए अनिवार्य माना जाता है।
Rishi Panchami व्रत कथा:
प्राचीन समय में विदर्भ देश में उत्तंक नामक सदाचारी ब्राह्मण रहते थे, जिनकी पत्नी का नाम सुशीला था। उनका एक पुत्र और एक पुत्री थी। कुछ समय बाद पुत्री का विवाह हुआ, लेकिन वह विधवा हो गई। दुखी ब्राह्मण दंपत्ति अपनी पुत्री के साथ गंगा किनारे एक कुटिया में रहने लगे।
एक दिन पुत्री सो रही थी, तभी उसके शरीर पर कीड़े लग गए। यह देखकर उसकी मां ने अपने पति से इसका कारण पूछा। उत्तंक जी ने समाधि लगाकर बताया कि पूर्व जन्म में यह कन्या ब्राह्मणी थी और उसने माहवारी के दौरान बर्तन छू लिए थे, जिसके कारण उसे यह कष्ट मिला है। अगर वह ऋषि पंचमी का विधिपूर्वक व्रत करेगी, तो उसके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। पुत्री ने व्रत किया, जिससे उसके सभी कष्ट समाप्त हो गए और अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य की प्राप्ति हुई।